Saturday 11 April 2009

तेल नहीं तेल की धार देखो...

कहते हैं तेल देखा है अब तेल की धार भी देखो। फिलहाल सरकार तेल की धार दिखा रही है। इसमें जनता बेचारी उलझी हुई है वह किसको असली दोषी माने। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को तेल बड़ी गहराई से प्रभावित करता है। तेल के भाव बढ़ने के साथ कमोबेश हर चीज पर प्रभाव पड़ता है। चूंकि सारी परिवहन व्यवस्था चाहे वह बस ट्रक हो या रेल तेल पर आधारित है इसलिए तेल के दाम बढ़ने के साथ ही माल भाड़ा और यात्री भाड़ा बढ़ने की पूरी संभावना रहती है। माल भाड़ा बढ़ने के साथ ही बाजार में बिकने वाले सभी उत्पाद भी महंगे होने लगते हैं। किसी वस्तु की कीमत में 10 से 15 फीसदी तक प्रभाव ट्रांसपोर्ट डालते हैं।

अगर डीजल के दाम बढ़ेंगे तो खेतों में ट्रैक्टर चलाना और पंपिंग सेट से सिंचाई भी मंहगी हो जाती है। जाहिर है इसका असर किसानों पर पड़ता है और खेती में उत्पादन लागात बढ़ जाती है। इसलिए तेल का दाम बढ़ते ही राजनैतिक पार्टियां और जनता के हर वर्ग में खलबली मच जाती है।
सरकार इस बात की दुहाई देकर तेल के दाम बढ़ाती कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बड़ रहे हैं इसलिए यहां भी दाम बढ़ाने के सिवा कोई विकल्प नहीं है। सभी सरकारी और निजी क्षेत्र की तेल कंपनियां सरकार पर लगातार दबाव बनाती हैं पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाए जाएं क्योंकि उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है। सरकार एलपीजी और किरासन तेल पर सब्सिडी देती है इसलिए वे हमें सस्ते में मिल रहे हैं। पर पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाना सरकार की आमदनी का प्रमुख साधन है इसलिए देश में पेट्रोल और डीजल पर सर्वाधिक टैक्स है। अगर पेट्रोल 50 रुपए लीटर के करीब है तो उसकी वास्तविक कीमत 20 से 22 रुपए लीटर तक ही है बाकि सब उस पर विभिन्न चरणों में लगने वाला टैक्स है। सरकार हवाई जहाज के लिए दिए जाने वाले तेल जिए एटीएफ (एयर टरबाइन फ्यूल) कहते हैं कि कीमत को हमेशा पेट्रोल से काफी कम रखा जाता है। कारण इस पर टैक्स कम लगाया गया है। वहीं दुनिया के कई देशों में डीजल व पेट्रोल दोनों की कीमतें लगभग बराबर है।
इस बार जब तेल की बढ़ी कीमतों को लेकर विरोध हुआ तो केंद्र सरकार ने सुझाव दिया कि राज्य सरकारें अपने हिस्से से बिक्री कर में कमी करें। कई राज्यों ने बिक्री कर में थोड़ी कमी की भी जिससे लोगों ने कीमतों को लेकर थोड़ी राहत महसूस की।
तेल कंपनियों को मिलेगी आजादी - पर अब सरकार तेल के दाम को लेकर इंडियन आयल सहित सभी सरकारी व निजी कंपनियों को यह छूट देने पर विचार कर रही है कि वे अपनी इच्छा से तेल की कीमतें कम अधिक कर सकें। एक नियामक के तहत उन्हें आजादी दे दी जाएगी कि जैसे इंटरनेशनल मार्केट में रेट 70 डालर प्रति बैरल या उससे अधिक हो जाए उसके अनुसार ही वे कीमत को बढ़ा सकेंगे साथ ही रेट कम होने पर भारत में भी रेट कम कर सकेंगे। इससे विभिन्न तेल कंपनियों के रेट अलग अलग भी हो सकते हैं। निजी कंपनियों के रेट पर तो सरकार का अब भी नियंत्रण नहीं है सरकारी कंपनियों को भी कीमते बढ़ाने घटाने की छूट मिल जाएगी। जाहिर है इसका असर बाजार पर पड़ेगा। फिर कीमतें बढ़ने या घटने के लिए लोग सरकार को कोसते हुए नजर नहीं आएंगे। तब तेल कंपनियां ही बाजार के हालात को देखते हुए तेल की धार तय करेंगी।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com



No comments: