Friday 14 January 2011

मल्टीप्लेक्स में छाई वीरानगी

कई सालों बाद एक बार फिर दिल्ली के किसी मॉल में जाकर फिल्म देखने की सोची । अपने नन्हे बेटे को हॉलीवुड की लोकप्रिय फिल्म गुलिवर ट्रेवेल्स दिखाना चाहता था। सो मैं पहुंच गया पीवीआर के थ्री स्क्रीन मल्टीप्लेक्स में। जैसे ही मैंने फिल्म के लिए दो टिकटों की मांग की, काउंटर पर बैठी बाला ने आग्रह किया है कि आप थोड़ी देर इंतजार करें...हो सकता है शो नहीं चल पाए। मैंने पूछा क्यों....दरअसल अभी तक इस शो के लिए एक भी टिकट नहीं बिका है। 

काउंटर गर्ल ने बताया कि कमसे कम छह टिकटें बिकने पर ही हम शो शुरू कर पाएंगे। खैर मैंने शापिंग मॉल की तीसरी मंजिल पर बने मल्टीप्लेक्स के आसपास के रेस्टोरेंट में चहलकदमी शुरू कर दी। फिल्म शुरू होने से पांच मिनट पहले फिर काउंटर पर पहुंचा। अब मुझे खुशी हुई फिल्म शुरू होगी। टिकट लेकर अंदर जाने पर पता चला कि फिल्म देखने वाले हम कुल चार लोग थे। फिल्म शुरू होने पर दो लोग और पहुंचे। यानी कुल छह लोगों ने मिलकर फिल्म देखी।

दिल्ली के कई बड़े मॉल में खुले सिनेमाघरों का यही हाल है। यहां दर्शक नहीं जुटते। टिकट दरें बहुत ऊंची हैं। सौ से दौ सौ रूपये तक...सिनेमाघर ज्यादा बन गए हैं। दर्शक कम हैं...जो फिल्म ज्यादा नहीं चलती है। कुछ हफ्ते बाद ही उसका असली डीवीडी आ जाता है बाजार में..वह भी बिल्कुल सस्ते में...ऐसे में आखिर महंगी फिल्में लोग देखें भी कैसे...छोटे शहरों के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर में भी कभी शो कैंसिल होने की बात नहीं सुनी। अगर कैंसिल हो तो दर्शक हंगामा कर दें। लेकिन मल्टीप्लेक्स में अक्सर शो कैंसिल हो रहे हैं।

आप घर तैयार होकर फिल्म देखने जाएं और हो सकता है कि आपकी पसंद की फिल्म का शो ही नहीं हो। ऐसे हालत तब हैं जबकि आज टिकट बुक करने के लिए टेली बुकिंग और 24 घंटे ऑनलाइन बुकिंग का भी विकल्प मौजूद है।
 

- विद्युत प्रकाश मौर्य