Saturday 18 January 2014

सुनंदा जैसी महिलाएं आत्महत्या नहीं करती...

एक आर्मी अफसर की बेटी। जिसका बचपन कश्मीर की वादियों में आतंकवाद के साए बीच गुजरा हुआ। बचपन से ही उसने जिंदगी की मुश्किल घड़ियां देखी थीं। ऐसे हालात जीवन से संघर्ष के लिए मजबूत बना देते हैं। पहली शादी नहीं चल सकी लंबी। तो दूसरे का हाथ थामा। दूसरा पति आर्थिक हानि के बाद मायूस रहने लगा। देश वापस लौट आया। पर सुनंदा नहीं लौटी।
क्योंकि वह मजबूत इरादों की बनी थी। उसने अपने दम पर अपना व्यवसाय आगे बढ़ाया। ब्यूटी पार्लर,  स्पा बिजनेस में पैसा लगाना। हाई प्रोफाइल सोशल वर्ल्ड में अपनी मजबूत हनक। इन सबके साथ वह शशि थरूर के पास पहुंची। तीसरे पति की तीसरी पत्नी बनी। ऐसी महिलाएं जिंदगी में कमजोर नहीं होतीं। वे हालात का मजबूती से सामना करती हैं। अपनी मौत के एक हफ्ते पहले दुबई की पार्टी में उसने दिखा दिया था। पाकिस्तान के बड़े पत्रकार को हड़का दिया था। उसने खुद बताया कि भारत के अंग्रेजी मीडिया के एक बड़े पत्रकार के साथ उसने कैसा सलूक किया। अपने आखिरी दिनों में अपने तीसरे प्यार को लेकर वह रक्षात्मक जरूर हो गई थी। उनकी आखिरी दिनों की गतिविधियों से कुछ ऐसा ही लगता है।
क्या ऐसी मजबूत महिला कोई आत्मघाती कदम उठा सकती है। वह तो विपरीत हालात में जीना कई बार सीख चुकी थी। वह अवसाद के दौर से मजबूती से लड़ना जानती थी। वह बार बार जिंदगी से लड़ कर बार बार जिंदगी गले लगाना जानती थी। वह जिंदगी से अपने लिए मौके छीनना भी जानती थी। किसी शायर ने लिखा है-
पस्त हौसले वाले तेरा क्या साथ देंगे...
इधर आ जिंदगी तुझे हम गुजारेंगे...
सुनंदा की जिंदगी जितनी लोगों के सामने है उसे देखकर लगता है कि उसके हौसले पस्त नहीं हुए थे। आखिर वह जिंदगी से हार क्यों मानती। तो आखिर क्या हो सकता है सुनंदा की मौत का सच।

-    विद्युत प्रकाश मौर्य   

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