Tuesday 8 November 2016

पहचान के लिए स्त्रियों को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है...

रंगकर्म में स्त्रियों को पुरुषवादी समाज के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। खासतौर पर निर्देशन की बात करें तो यह 24 घंटे व्यस्त रखने वाला कार्य है, इसलिए इसमें महिलाएं कम दिखाई देती हैं। पर अगर महिला रंगमंच में निर्देशक के तौर पर आती है तो वह महिला पात्रों को ज्यादा मौलिक स्वरूप में पेश करती है। ये विचार हैं प्रख्यात रंगकर्मी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) की पूर्व निर्देशक श्रीमती कीर्ति जैन के। कीर्ति जैन 1989 से 1995 तक एनएसडी की निर्देशक रहीं। वे इस राष्ट्रीय संस्थान की पहली महिला निर्देशक भी रहीं।

कीर्ति जैन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज  में सात नवंबर को हिंदी रंगमंच और महिलाएं विषय पर हुए सेमिनार के पहले सत्र में मुख्यवक्ता के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महिलाओं को जब मौका मिला है वे नए तरह का रंगमंच लेकर आई हैं। वैसे बहुत कम नाटक लिखे गए हैं जो महिलाओं के प्रोसपेक्टिव में हों। हालांकि कीर्ति जैन कहती हैं कि जयशंकर प्रसाद का लिखा हुआ ध्रुवस्वामिनी पहला नाटक है जिसे फेमनिस्ट कहा जा सकता है। आज के दौर में मीराकांत, मृदुला गर्ग और मृणाल पांडे ने महिला केंद्रित नाटक लिखे हैं।


सेमिनार – हिंदी रंगमंच और स्त्रियां
कीर्ति जैन कहती हैं - अगर कोई महिला लिखती है तो उसमें विजुअल इमेजरी ( विम्ब) अलग किस्म का उभर कर आता है। उनके अनुभव अलग किस्म के हैं। मैं खास तौर पर पंजाबी की नाटककार नील मान सिंह चौधरी को याद करना चाहूंगी जिसनेक नाटक में महिलाएं काफी अलग किस्म की दिखाई देती हैं। अब हालात बदल रहे हैं महिलाएं किसी भी तरह का रिस्क लेने के तैयार हैं।

मिरांडा हाउस दिल्ली विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग की शिक्षक डाक्टर रमा यादव कहती हैं भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र को पंचम वेद कहा है और इसमें स्त्री के लिए जगह है। जयशंकर प्रसाद के नाटकों में स्त्री प्रमुखता से आई है। रविंद्र नाथ टैगोर के विसर्जन नाटक में भी स्त्री प्रमुखता से आई है। डाक्टर रमा ने अपने दो साल के हंगरी प्रवास की चर्चा की जहां उन्होंने मीरा पर नाटक रचा था जो काफी लोकप्रिय हुआ।

सेमिनार में हंसराज कालेज के हिंदी विभाग के छात्र छात्राओं ने भी गंभीरता से हिस्सा लिया। सेमिनार का आयोजन पत्रकारिता के प्रख्यात शिक्षक डॉक्टर रामजीलाल जांगिड के सानिध्य में भारतीय जनसंचार संघ द्वारा किया गया। पहले सत्र की अध्यक्षता पत्रकार विद्युत प्रकाश मौर्य ने की। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत हंसराज कालेज की प्राचार्य डाक्टर रमा जैन ने किया। पत्रकार रविंद्र साधु ने विषय प्रवेश प्रस्तुत किया।

नाटक का मूल उद्देश्य मनोरंजन – दया प्रकाश सिन्हा

सेमिनार के दूसरे सत्र में पूर्व आईएएस लेखक और रंगकर्मी दया प्रकाश सिन्हा ने के रंगकर्म विशद चर्चा की। उन्होंने कहा नाटक कला भी है और साहित्य भी है। यह द्विआयामी विधा है। पर नाटक का मूल उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना है। मनोरंजन यानी जो मन को रंग दे। मनोरंजन में ज्ञानवर्धन भी शामिल हो सकता है। पर मैं इससे सहमत नहीं हूं कि यह कोई क्रांति करने के लिए हथियार है। 

सिन्हा ने कहा,  भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना ही देवताओं के मनोरंजन के लिए की थी। इसी तरह देश में पारसी थियेटर ब्रिटिश अधिकारियों के मनोरंजन के लिए आया। हालांकि बाद में इसका इस्तेमाल उद्देश्य परक होने लगा। 1935 में प्रगतिशील लेखक संघ और 1942 में भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा) स्थापना हुई। जाहिर इप्टा के नाटकों का उद्देश्य वाम विचारों का प्रसार था तो  दक्षिण पंथी विचार धारा के लोगों ने संस्कार भारती की स्थापना की।
वहीं सरकार की संस्थाएं भी सरकारी नीतियों के प्रचार प्रसार के लिए नाटकों का सहारा लेती हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है पर नाटकों का उद्देश्य इतना भर ही नहीं है। 1960 बैच के आईएएस दया प्रकाश सिन्हा ने अपने 1955 के काल के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अनुभव भी साझा किए जिसमें उन्हें नाटक करने में और खास तौर पर स्त्री पात्रों को नाटकों में शामिल करने के लिए तैयार करने में कितनी मुश्किलें आईं। दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात पत्रकार और आईआईएमसी के अंगरेजी पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर प्रदीप माथुर ने की। हंसराज कॉलेज के हिंदी विभाग के पूर्व शिक्षक प्रोफेसर प्रभात कुमार ने अतिथियों का धन्यवाद किया।  

डॉक्टर जांगिड ने मनाया 78वां जन्मदिन


यह महज संयोग ही रहा है कि 7 नवंबर हिंदी पत्रकारिता की कई पीढ़ियों को शिक्षित करने वाले और कई भाषाओं के हजारों पत्रकारों को गढने वाले डाक्टर रामजीलाल जांगिड का 78वां जन्मदिन था। तो सबकी ओर से कार्यक्रम के अंत में केक काटकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी गई।

जीवन के  77 साल पूरे करने के बाद जिस ऊर्जा और उत्साह स डाक्टर जांगिड सक्रिय हैं वह हमेशा युवाओं को प्रेरणा देता रहेगा। दो माह पहले उनकी सहधर्मिणी डाक्टर सत्या जांगिड उन्हे इस संसार से छोड़कर चली गईं पर जिंदगी जिंदादिली का नाम है.. ये कोई उनसे सीखे।
 -vidyutp@gmail.com
( SEMINAR, HANSRAJ, COLLEGE, DELHI UNIVERSITY ) 


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